भारत की चैंपियन बॉक्सर लवलीना बोरगोहाईं ने विमेन वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप के 75 किलो वर्ग में ऑस्ट्रेलिया की केटलिन पारकर को हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया है.लवलीना ने इस चैंपियनशिप में भारत को चौथा गोल्ड दिलाया.
इनके पहले निख़त ज़रीन, नीतू घनघस और स्वीटी बूरा भी भारत की झोली में गोल्ड मेडल डाल चुकी हैंइससे पहले लवलीना विश्व चैंपियनशिप में भी दो बार कांस्य पदक जीत चुकी हैं. उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में भी कांस्य पदक जीता था.लवलीना बोरगोहाईं टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतने वाली इकलौती भारतीय मुक्केबाज थीं.
उन्हें तमाम दिग्गज मुक्केबाजों के बीच कांस्य पदक जीता, यह और भी मायने रखता है भारतीय दल में मैरीकॉम और अमित पंघाल की मौजूदगी की वजह से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही थी. पर लवलीना के कांस्य पदक ने किसी तरह से भारत की इज्जत बचाई थी.
लवलीना को ओलंपिक फाइनल में भाग लेने का भरोसा था लेकिन वह सेमीफाइनल मुकाबले में विश्व चैंपियन बुसेनाज के हाथों हार गई थीं. सही मायनों में वह अपनी विपक्षी का ढंग से सामना ही नहीं कर पाई और 5-0 से हारकर कांस्य पदक से संतोष करने को मजबूर हो गई
.ओलंपिक में पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है। और मुक्केबाज भी इससे भिन्न नहीं हैं. ओलंपिक में पदक जीतने की वजह से लवलीना को देश का स्टार बना दिया. लौटने पर जगह-जगह सम्मान होने से वह कहीं ना कहीं दिशा भटकने लगी थीं.उतार-चढ़ाव का दौरलवलीना ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने से रातों-रात मिली प्रसिद्धि को सही मायनों में पचा नहीं सकीं. इसका ही परिणाम था
कि वह 2022 के इस्तांबुल विश्व चैंपियनशिप में एकदम फ्लॉप हो गई थीं.उनकी यहां दूसरे राउंड में ही चुनौती टूट गई. कॉमनवेल्थ गेम्स के मुकाबलों को आमतौर पर आसान माना जाता है. इस कारण उनसे बर्मिंघम में स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीद की जा रही थी, पर वह क्वार्टर फाइनल से आगे अपनी को नहीं बढ़ा सकीं.सफलता को पूजा जाता है और सफलता हासिल नहीं करने वालों की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है.
इन खराब प्रदर्शनों के बाद यह कहा जाने लगा कि उनकी संभावनाएं खत्म हो गई हैं. इस बीच, इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन ने लवलीना के 69 किलो वर्ग को 2024 के पेरिस ओलंपिक में खत्म करके उनकी मुश्किलें और बढ़ा दीं. अब उनके पास 75 किलो वर्ग में जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था.